Tuesday, March 9, 2010

रुंधा सवाल!!


क्यों जन्मा था मुझे जो किसी को यूँ ही अर्पण कर देना था,
क्यों कहा अपना जो सदा के लिए पराया कर देना था,
गर्भ में पीढ़ा मैंने भी उतनी ही दी तो क्यों किसी से कमतर हुई,
रात-२ जाग पाला मुझे भी तेरी ममता तो समान्तर रही!

बचपन खेला जिस आंगन में जहाँ उम्र कि बेल बढ़ी,
उसी आँगन में जाने को आज क्यों उलझे से नियमों में बंधी,
हल्का ताप होता था मुझे, पसीना तुझे आ जाता था,
दे दिया भेंट कन्या को जब तब कलेजा क्यों नहीं कांपा था!

जिस गोद पली जिन कांधो पर चली,
वो
रिश्ते पीछे छूटे हैं,
नए घर में पहेचानूं किसको
यहाँ तो दर्पण भी सब टूटे हैं!

इतनी विनती सुनना भगवन , न दोहराना ये प्रतिघात,
इस जन्म किया सो किया अगले जन्म ये न करना मेरे साथ,
अगर बेटी जग कि जननी है तो क्यों सीना उसका छलनी है,
डोली में बिठाया था तुमने आभास हुआ ये अर्थी है !!

रंजीता (दार्जीलिंग ) को समर्पित...शब्द मेरे हैं , ये कहानी उसकी है !!