Tuesday, May 18, 2010

भगवान् को देखा......


कहते हैं बच्चे भगवान् का रूप होते हैं,
निश्चित ही भगवान् होगा वो जो लू के थपेड़ों को झेलता,मुस्कुराता हुआ,
मट्टी से बने हाथों से, मट्टी के टीले को खोदता हुआ ,
ज़मीन से निकलती आग कि गोद में बैठ कर अपना बचपन ढूंढ रहा था ,
जिस्म पर एक चिंदी भी नहीं थी, इस भभकती गर्मी का शायद यही एक मात्र जवाब था उसके पास,
मजदूर का बेटा था वो , वही मजदूर जो अपने परिवार की छाया काटकर इंसानों के लिए अट्टालिका बना रहा था,
इस मई की गर्मी में दो जून रोटी की खातिर पानी की तरह पसीना बहा रहा था......
निश्चित ही भगवान् होगा वो क्योंकि इंसान तो वतानकूलित पांचसितारा कान्फेरेंस कमरों में बैठ कर "ग्लोबल वार्मिंग" पर विचार विमर्श करते हैं, ज्ञानि हैं ये शीघ्र इस मसले का भी हल ढूंढ निकालेंगे ..............
डर ये है सिर्फ की तब तक बचपन को खोद कर खोजते- इस भगवान् की हथेली पर अगण्य छाले पढ़ जायेंगे ,हल मिलते-मिलते उसका बचपन बीत जाएगा..... ....निश्चित ही भगवान् है वो!

आज मैंने स्वयं भगवान् को देखा !!


Living next to a construction site, I witness such miracles day & night ......ALAS!There is nothing I am able to do about it. Man is indeed his own biggest enemy , his greed in-quenchable ,contentment missing .