Saturday, May 11, 2013

New dawn !!

This is my last post on this blog, someones venomous words had kept me away from my first love " writing" for long. Well, not anymore . Buddy , u don't need to understand my fairytales /fantasies coz that needs a heart which u never had .

I'm back now.
A new blog, a newer perspective & a totally new me.

Coming soon!! 

Wednesday, May 8, 2013

रीढ़ ----रचना, डॉ. हरिवंश राइ बच्चन !

यह कविता मेरे जीवन का आधार है, इसे मैं तमाम IAW की सदस्यों को समर्पित करती हूँ !!

कभी नहीं जो तज सकते हैं अपना न्यायोचित अधिकार,
कभी नहीं जो सह सकते हैं शीश नवा कर अत्याचार,
एक अकेले हों या उनके साथ खढी हो भारी भीड़.
मैं हूँ उनके साथ खढी जो सीधी रखते अपनी रीढ़.
निर्भय होकर घोशित करते जो अपने उद्गार विचार
जिनके जिव्वाह पर होता है उनके अंतर का अंगार
नहीं जिन्हें चुप कर सकती है आत तहियो कि शमशीर
मैं हूँ उनके साथ खढी जो सीधी रखते अपनी रीढ़.
नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता
ऊँचे से ऊँचे सपनो को देते रहते जो नयूता
दूर देखते जिनके पैनी आँख भविष्यत् का तम्चीर
मैं हूँ उनके साथ खढी जो सीधी रखते अपनी रीढ़.
जो अपने कंधो से पर्वत से बाढ़ टक्कर लेते हैं
पथ कि बाधाओं को जिनके पांव चुनौती देते हैं
जिनको बाँध नहीं सकती है लोहे कि बेधी जंजीर
मैं हूँ उनके साथ खढी जो सीधी रखते अपनी रीढ़.
जो चलते है अपने छप्पर के ऊपर लुका धर कर
हर जीत का सौदा करते जो प्राणों कि बाज़ी पर
कूद उद्दाड़े में नहीं पलट कर जो फिर ताका करते तीर
मैं हूँ उनके साथ खढी जो सीधी रखते अपनी रीढ़.
जिनको यह अवकाश नहीं है देखें कब तारे अनुकूल,
जिनको यह परवाह नहीं है कब तक भद्र, कब दिक्शूल,
जिनके हाथों कि चाबुक से चलती है उनकी तकदीर,
मैं हूँ उनके साथ खढी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
तुम हो कौन कहो जो मुझसे सही गलत पर्थ लोटो जान
सोच सोच - पूछ पूछ कर बोलो कब चलता तूफ़ान
सरथ पर्थ वोह है जिसपर अपनी छाती ताने जाते वीर
मैं हूँ उनके साथ खढी जो सीधी रखते अपनी रीढ़.