मैं पा सका न कभी इस खलिश से छुटकारा,
वो मुझसे जीत भी सकता था जाने क्यों हारा,
बरस के खुल गए हैं आंसू, निठेर गई है फिजा,
चमक रहा है सरे-शाम दर्द का तारा,
किसीकी आँख से टपका था एक अमानत है,
मेरी हथेली रखा हुआ ये अंगारा,
जो पर समेटे तो एक शाख भी ना पाई ,
खुले थे पैर तो मेरा आसमा था सारा,
वो सांप छोढ़ दे डसना yऐ मैं भी कहता हूँ,
मगर लोग छोडेंगे न उसको गर न फुंकारा .............
वो मुझसे जीत भी सकता था जाने क्यों हारा,
बरस के खुल गए हैं आंसू, निठेर गई है फिजा,
चमक रहा है सरे-शाम दर्द का तारा,
किसीकी आँख से टपका था एक अमानत है,
मेरी हथेली रखा हुआ ये अंगारा,
जो पर समेटे तो एक शाख भी ना पाई ,
खुले थे पैर तो मेरा आसमा था सारा,
वो सांप छोढ़ दे डसना yऐ मैं भी कहता हूँ,
मगर लोग छोडेंगे न उसको गर न फुंकारा .............
1 comment:
Jab tum saath they, to laga nahin tum nahin hogey saath,
main sare jahan ko bhulatee gayee , thukratee gayee,
aaj na tum ho... na saraa jahan....
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