Friday, September 11, 2009

खलिश--------जावेद अख्तर !




मैं पा सका न कभी इस खलिश से छुटकारा,
वो मुझसे जीत भी सकता था जाने क्यों हारा,

बरस के खुल गए हैं आंसू, निठेर गई है फिजा,
चमक रहा है सरे-शाम दर्द का तारा,

किसीकी आँख से टपका था एक अमानत है,
मेरी हथेली रखा हुआ ये अंगारा,

जो पर समेटे तो एक शाख भी ना पाई ,
खुले थे पैर तो मेरा आसमा था सारा,

वो सांप छोढ़ दे डसना yऐ मैं भी कहता हूँ,
मगर लोग छोडेंगे न उसको गर न फुंकारा .............

1 comment:

Pal said...

Jab tum saath they, to laga nahin tum nahin hogey saath,
main sare jahan ko bhulatee gayee , thukratee gayee,
aaj na tum ho... na saraa jahan....