Thursday, February 25, 2010

गुमान...----और कौन, गुलज़ार!!

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने----

काले घर में सूरज रख के,
तुमने शायद सोचा था, मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,
मैंने इक चराग जला कर,
अपना रास्ता खोल लिया

तुमने एक समंदर हाथ में ले के,
मुझ पे ठेल दिया,
मैंने नूंह कि कश्ती उसके ऊपर रख दी,
काल चला तुमने और मैंने जानिब देखा
मैंने काल को तोढ़ के लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया

मेरी खुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा
मेरे इक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया----
मौत कि शह देकर तुमने समझा था अब तो मात हुई
मैंने जिस्म का खोल उतार के सौंप दिया--और रूह बचा ली

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब "तुम" देखो बाज़ी

मैं उढ़ते हुए पंछियों को डराता हुआ
कुचलता हुआ घास कि कलगियाँ
गिराता हुआ गर्दनें इन दरख्तों की, छुपता हुआ जिनके पीछे से निकला चला जा रहा था सूरज
तआकूब में था उसके मैं
गिरफ्तार करने गया था उसे
जो लेके मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था!!

दो ही तरीके होते हैं ज़िन्दगी जीने के...इक हार मान लो और उसे नसीब का नाम दे दो या चुनौती समझ कर ऐलान-- जंग कर दो.........मैं फिर दूसरा रास्ता चुन रही हूँ, जा रही हूँ लाम पर!!
भावनाओं कि सरहद पर, तर्क-वितर्क का असला लिए, आत्मा-सम्मान की लड़ाई लड़ने..............ये रण है!!

Monday, February 8, 2010

तले में कोई छेद था शायद,
फिर भी चूल्हे पे हांडी चढ़ाये बैठी रही,
रिश्ते रिसते रहे बे-पनाह......
मैं कलछी हिलाती रह गयी!!!

Thursday, February 4, 2010

Those of you who kept wondering why I was away from my blog ,
all the followers who waited patiently for an update,
thank you for all your love and support.....I owe you an apology & more to it, an explanation। The january of 2010 saw me introspecting about my own life,meditating/hibernating ....enormous twisting & churning took place, indeed it yielded both amrut & venom......venom - I suceeded in flushing out,
Dew- drops of amrut - are waiting here for you....

here's why I was missing.......A Triveni says it all...

कुछ नए रिश्तों पे बौर आई,
कुछ पुरानों कि जढ़ों को दीमक खा गयी,

मौसम ने मिजाज़ बदला और मिजाज़ ने मौसम!!!

nirvana....


कुछ उम्र का तकाज़ा है, कुछ वक़्त कि मार,
दुनिया के थपेड़े बहाए लिए जा रहे हैं मुझे "उसके" पास....
रस्मों कि जंजीरें मंज़ूर नहीं, फिर भी दिल कहता है "तू" मुझसे दूर नहीं..
शिव कि पिंडी पे धुप जलाऊँ या मक्के कि तरफ सर झुकाओं...
क्यों बनने दूं इस कश्मकश को अपने पांव कि बेडी,
तू रहेगा पिता मेरा और मैं बेटी तेरी,
दोनों हाथ उठा कर , करती हूँ आत्मा-समर्पण..
था क्या दुनिया में मेरा,
तेरा तुझको अर्पण!!