Saturday, August 1, 2009

पथरीली आँखें (नई त्रिवेणी)

पथरा गयीं थीं आँखें ज़माने पहले तेरे इंतज़ार में,
आहिस्ता-आहिस्ता खुदी ने हमें भी पत्थर बना दिया.......
आँख की पोर से ये पानी सा क्या छलक उठा आज फिर!!

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