Friday, October 2, 2009

तय तो बहुत कुछ हुआ था........

दोस्ती मैं हर एक लम्हा विसाल होगा यह तय हुआ था
बिछढ़ के भी एक दूसरे का ख्याल होगा यह तय हुआ था

चलो की फैजान कश्तियों को जला दें गुमनाम साहिलों पर
की अब यहाँ से न वापसी का सवाल होगा यह तय हुआ था

यह क्या की सांसें उखड गई हैं सफर के आगाज़ ही में यारों
कोई भी थक कर न रास्ते में निढाल होगा यह तय हुआ था ........................

उल्फत के वादे भूल गए
बिछड़ने का तकाजा याद रहा
चलो मुहब्बत की दोनों रस्में निभा दी तुमने.....

1 comment:

Pal said...

tu woh waqt hai

jo maine jiya hai

jisne mujhe rulaya bhi

hasaya bhi

mujhe mujh se milaya bhi

magar waqt ki adat hai beet jana

tu waqt tha.