Tuesday, October 13, 2009

नज़्म उलझी हुई है सीने में......गुलज़ार!


नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए है होठो पर
उड़ते फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ्ज़ कागज़ पे बैठते ही नही
कब से बैठा हू मैं जानम
सादे कागज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बहतर भी नज़्म क्या होगी.................................

1 comment:

Unknown said...

nazm is my most most fav one and a very very special one too.
Did u finally buy 'Pukhraaj' ?